रेत का बनाने लगे इक लहर आयी तबाह कर गयी |
रेत का घर बनाने लगे इक लहर आयी तबाह कर गयी ज़ालिम ज़माने की साजिशो मैं मोह्हबत जुदा हो गयी;
देखा न गया किसी से भी मेरी खुशहाल ज़िन्दगी को हलकी सी चिंगारी से हस्ती मरी फनाह हो गयी;
खुशिया दी उसे गमो की कोई सबा न चले ज़माने की नज़र मैं मोह्हबत गुनाह हो गयी;
अरमान मिटी मैं मिल गए वो किसी और की थी लाख कोशिशे की सँभालने की ज़ीस्त तबाह हो गयी;
वो बदनाम न हो लफ्ज खोले नहीं जीत राह ऐ मंजिल संगदिल बे वफ़ा हो गयी;
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