रेत का  बनाने लगे इक लहर आयी तबाह कर गयी
रेत का  बनाने लगे इक लहर आयी तबाह कर गयी


रेत का घर  बनाने लगे इक लहर आयी तबाह कर गयी ज़ालिम ज़माने की साजिशो मैं मोह्हबत जुदा  हो गयी;
देखा न गया किसी से भी मेरी खुशहाल ज़िन्दगी को हलकी सी चिंगारी से हस्ती मरी फनाह हो गयी;
खुशिया दी उसे गमो की कोई सबा न चले ज़माने की नज़र मैं मोह्हबत गुनाह हो गयी;
अरमान मिटी मैं मिल गए वो किसी और की थी लाख कोशिशे की सँभालने की ज़ीस्त तबाह हो गयी;
वो बदनाम न हो लफ्ज खोले नहीं जीत राह ऐ मंजिल संगदिल बे वफ़ा हो गयी;